चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और देवी मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिल रही है. वहीं आज हम आपको हरदी के मां महामाया मंदिर की बारे में बताने वाले हैं, जिसकी मान्यता काफी खास है.

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा जिला मुख्यालय से 15-16 किलोमीटर दूर हरदी ग्राम है, जहां पहाड़ पर मां महामाया देवी मंदिर में विराजमान हैं. प्रतिवर्ष चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि में पूरे नौ दिन तक विशेष पूजा पाठ की जाती है. इसके साथ ही दोनों नवरात्रि में सप्तमी के दिन यहां देवी मां स्वयं आने का प्रमाण देती हैं.

निःसंतान को मिलता है संतान
मां महामाया मंदिर के पंडित शाश्वत पांडेय जी ने लोकल 18 को बताया कि यहां महामाया मां सभी श्रद्धालुओं की मनोकामना पूरी करती हैं. विशेष रूप से जो निःसंतान होते हैं, उनको संतानता का सुख देने वाली देवी हैं. हर साल चैत्र और कुंवार दोनों नवरात्रि में सप्तमी की रात विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. मंदिर के गर्भगृह में मां के पिंडी रूप के सामने चलनी से आटा बिखेर दिया जाता है. मां को भोग के रूप में नैवेद्य अर्पित की जाती है, जिसमें बीड़ापान में पंचमेवा के साथ 21 – 21 नग लोग, इलाइची, सुपाड़ी रहता है. थाली में सजाकर मां को भोग लगाया जाता है.

माता देती हैं अपने आने का प्रमाण
उसके बाद रात 12 बजे से 01 बजे तक एक घंटे के लिए मंदिर के कपाट (दरवाजा) को सबके सामने बंद कर दिए जाते हैं और अंदर कोई नहीं रहता है. इसके साथ ही मंदिर के सारे कैमरों पर कपड़े बांध दिए जाते हैं और चारों ओर अंधेरा कर दिया जाता है. पंडित ने बताया कि जब एक घंटे के बाद भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर का पट पुन: खोला जाता है, तब मां अपने आने का एहसास भक्तों को कराती हैं. जमीन पर फैले आटे के ऊपर कभी मां के पांव के निशान, तो कभी शेर के पंजे के निशान स्पष्ट नजर आते हैं. वहीं मंदिर का पट खुलने के बाद जब पात्र में रखी प्रसाद सामग्री की गिनती की जाती है, तो कोई एक चीज गायब मिलती है. यहां ऐसी मान्यता है कि सप्तमी की रात मां महामाया देवी शेर पर सवार होकर यहां साक्षात आती हैं और अपने आने का भक्तों को प्रमाण भी देती हैं.

वर्षों से चली आ रही परंपरा
यहां महामाया देवी मां का मंदिर नीम पेड़ के नीचे स्थापित हैं. यहां शाम के समय महाआरती की जाती है, जिसमें हर रोज बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. वहीं नवरात्रि में सप्तमी की रात शेर के पंजे के निशान देखने काफी ज्यादा संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं. मंदिर में यह परंपरा सालों से चलती आ रही है. हर साल नवरात्रि में कपाट खुलने के बाद शेर के पदचिह्न के निशान या माता के पदचिन्ह भक्तों को देखने को मिलते हैं.