आशापुरी माता का यह मंदिर खरगोन के आशापुर गांव में मौजूद है. क्षेत्र में आशापुर धाम के नाम से प्रसिद्ध है.  किवदंती है की पांडव पुत्र अर्जुन एवं मांडव के राजा आला ऊदल ने यहां तपस्या की है. मांधाता (वर्तमान ओंकारेश्वर) के रहा मांधाता और पृथ्वीराज सिंह चौहान की कुलदेवी है.  यहीं नहीं नवरात्रि में 28 गोत्र के लोग माता को कुलदेवी के रूप में पूजने आते है. पहले गुफा में माता विराजमान थी. 12 वीं शताब्दी में पहली बार मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था. इसके पहले माता गुफा में थी.
शास्त्रों में मां दुर्गा के कई रूपो का वर्णन आता है. बाकी माता भी उन्हीं में से एक है. खरगोन के जंबू मोहल्ले में श्री दुर्गा देवी बाकी माता मंदिर के नाम से स्थित है. यहां पीपल के वृक्ष में ओटले पर एक ही छत के नीचे नौ देवीय शक्ति विराजमान है. मंदिर करीब 290 साल पुराना है. बताते है की पास ही प्राचीन बावड़ी में से देवी की सभी पिंड स्वरूप प्रतिमाएं निकली है. मान्यता है की माता को भोग में पान चढ़ता है. इस पान का सेवन करने से व्रतधारी महिलाओ के पेट में ठंडक पहुंचती है.
जयंती माता का मंदिर अत्यंत प्राचीन है. गुफा में माता विराजमान है. देश भर के श्रद्धालुओं की आस्था मंदिर से जुड़ी है. किवदंती है की आदि शक्ति की जिव्हा यहां गिरी थी. अज्ञातवास के दौरान पांडव पुत्र भी यहां आए थे. मान्यता है की पूरे विश्व में जयंती माता का यह एकमात्र मंदिर है जहां देवी की प्रतिमा गर्भगृह के मध्य में नहीं बल्कि एक साइड में विराजित है. यह स्थान बड़वाह के नजदीक चोरल नदी के किनारे विध्यांचल के घने जंगल में है.
महिषासुर मर्दिनी माता पार्वती मंदिरविंध्यवासिनी माता पार्वती का मंदिर अति प्राचीन है. इसे महिषासुर मर्दिनी के नाम से देशभर में प्रसिद्ध है. मंदिर खरगोन में विंध्यांचल पर्वत के शिखर पर ऊंची चोटी पर स्थित है. विंध्यवासिनी देवी पार्वती का यह मंदिर देश का इकलौता मंदिर है. बताते है की दैत्य राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं के आव्हान पर मां दुर्गा बाल रूप में प्रकट हुई थी. मान्यता है की देवी यहां साक्षात मौजूद है और दर्शन मात्र से मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. यहां आने वाले भक्तों का मानना है की देवी दिन में तीन रूपों में दर्शन देते है. क्षेत्र में होलकर कालीन हेतिहासिक जाम दरवाजा और मंदिर होने से दूर-दूर से भक्त दर्शन करने आते है.
खरगोन के भीकनगांव क्षेत्र में मां बाघेश्वरी का प्राचीन मंदिर और कुंड है. यह मंदिर महाभारत कालीन है. क्षेत्र में प्राचीन तीर्थस्थल सगूर भगूर के नाम से प्रसिद्ध है. नवरात्रि में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन, पूजन और स्नान के लिए आते है. बताते है की यहां जो कुंड है उसमे नहाने से चर्म रोग, मानसिक रोग और लगवा ग्रसित व्यक्ति 5 मंगलवार नहाते है तो वें ठीक हो जाते है. माना जाता है कि इस कुंड में अमृत की कुछ बूंदे गिर गई थी.