सनातन धर्म में व्रत का विशेष महत्त्व होता है, हिन्दू धर्मग्रंथों में व्रत-क्रिया को संकल्प, सत्कर्म अनुष्ठान भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन होते हैं. सभी तरह के दुःख – दर्द दूर हो जाते हैं और व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है. व्रत सामान्य तौर पर दो तरीके के होते हैं जिनमें एक तो सामान्य व्रत होता है. दूसरा निर्जला व्रत होता है. सामान्य व्रत वह व्रत होता है जिसमें व्रतधारी जल, फल, दूध जैसे फलाहार का सेवन कर व्रत पूर्ण करता है, जबकि निर्जला व्रत में व्रतधारी जल, अन्य, फल समस्त वस्तुओं का त्याग कर व्रत पूर्ण करता है.

साबूदाना व्रत के लिए सही या गलत
 कई बार प्रश्न यह उठता है कि क्या व्रत में साबूदाना खाना चहिए या नहीं? वैज्ञानिक आधार पर व्रत के दौरान साबूदन खाना सेहत के लिए बेहतर विकल्प हो सकता है. इससे शरीर को एनर्जी मिलती है, लेकिन शास्त्रीय मत व्रत के दौरान साबूदाना खाने से मना करते हैं. इसके पीछे की मुख्य वज़ह साबूदान को बनाए जाने की प्रक्रिया है, क्योंकि सनातन धर्म में व्रत की पवित्रता महत्वपूर्ण होती है. चाहे वह पूजन के समय हो या प्रसाद बनात समय.

साबूदाना पाम सागो के तने में पाए जाने वाले टैपिओका रूट से बनता है, जिसे कई दिनों तक प्रोसेस करके हम तक पहुंचाया जाता है. ऐसे में शुद्धता संबंधी मानकों में यह उचित नहीं बैठता और धर्मगुरु इसे अशुद्ध मानते हैं, इसलिए शास्त्रीय मत होता है कि फलाहार में साबूदाना से परहेज करें.

व्रत में कैसा फलाहार लें
लोकल 18 से बात करते हुए आचार्य पंकज सावरियां ने बताया कि व्रत के दौरान आप साबूदाना और रेवड़ी दाना, जो कि शक्कर और आटे से बनता हैं, इनका सेवन नहीं करें. इसके अलावा, दूध, फल, आलू, सिंघाड़ा इत्यादि को फलाहार लेने की सलाह देते हैं. आचार्य पंकज ने बताया कि प्रातः पूजा संपन्न होने के बाद दूध या जल का सेवन करें. उसमें प्रसाद रूप में फल ले सकतें है, उसके बाद संध्या आरती के पश्चात ही फलाहार करें. दोपहर में भी शुद्ध कपड़ों के पहन कर ही जल लेना चहिए, व्रत एक प्रतिज्ञा है, जिसे पूर्ण करने के लिए कड़ाई से पालन करें. इसके अतिरिक्त तामसी भोजन से दूर रहें. उसका स्पर्श आप के व्रत को खंडित कर सकता है, इसलिए तामसी वस्तुओं से उचित दूरी बना कर रखें.


17 बार नष्ट किया गया
सोमनाथ में दूसरा शिव मंदिर 649 ईस्वी में वल्लभी के यादव राजाओं द्वारा बनाया गया था. इसके अलावा गुर्जर प्रतिहार वंश के नागभट्ट द्वितीय, चालुक्य राजा मूलराज, राजा कुमारपाल, सौराष्ट्र के राजा महीपाल जैसे राजाओं ने इसे कई बार बनवाया. गजनवी के अलावा सिंध के गवर्नर अल-जुनैद, अलाउद्दीन खिलजी, औरंगजेब ने इसे बर्खास्त कर दिया. इतिहासकारों का कहना है कि सोमनाथ मंदिर को 17 बार नष्ट किया गया और हर बार इसका पुनर्निर्माण किया गया. 

वर्तमान मंदिर का निर्माण किसने करवाया?
हालांकि, जो मंदिर अब खड़ा है, उसे 1947 के बाद भारत के गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने बनवाया था और 1 दिसंबर 1995 को भारत के राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इसे राष्ट्र को समर्पित किया था. सरदार पटेल सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव लेकर महात्मा गांधी के पास गए थे. गांधी जी ने इस प्रस्ताव की सराहना की और जनता से धन एकत्र करने का सुझाव दिया. सरदार पटेल की मृत्यु के बाद केएम मुंशी के मार्गदर्शन में मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य पूरा किया गया. मुंशी उस समय भारत सरकार के खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री थे. मंदिर का निर्माण कैलाश महामेरु प्रसाद शैली में किया गया था. मंदिर में एक गर्भगृह, एक सभा कक्ष और एक नृत्य कक्ष है. शिखर के शीर्ष पर रखे गए कलश का वजन 10 किलोग्राम है और ध्वजदंड 27 फीट ऊंचा और एक फीट की परिधि वाला है.