धार ।    आदिवासी बाहुल्य और कांग्रेस की मजबूती वाली धार लोकसभा सीट पर प्रत्याशी बदलने की अटकलें कांग्रेस के लिए एक और नुकसान का कारण बन सकती है। यहां घोषित किए गए प्रत्याशी राधेश्याम मुवैल का कहना है कि चुनाव कार्यालय की सजावट इतना मायने नहीं रखती, जितनी जमीनी मेहनत। उचित अवसर की तलाश में रुके कार्यालय उद्घाटन को टिकट बदलने की संभावनाओं से जोड़ा जाना उचित नहीं है। मुवैल कहते हैं कि वे टिकट एलान से पहले भी लोगों के बीच सक्रिय थे। एलान के बाद भी उन्होंने ये क्रम जारी रखा था और जीत के बाद भी उनकी लोगों के बीच मौजूदगी ऐसी ही बनी रहेगी। कांग्रेस की पहली उम्मीदवार सूची में धार लोकसभा प्रत्याशी बनाए गए जिले की मनावर तहसील के निवासी राधेश्याम मुवैल का टिकट बदले जाने की अटकलें तेज हैं। आरोप है कि एक महीने से ज्यादा समय होने के बावजूद मुवैल ने अब तक अपनी लोकसभा में एक भी चुनाव कार्यालय नहीं खोला है। हालांकि, पार्टी स्तर पर इस बारे में कोई अधिकृत बयान नहीं आया है। लेकिन इस सुगबुगाहट ने प्रदेश की कांग्रेस सियासत में हलचल पैदा कर दी है। इन चर्चाओं से पीसीसी चीफ जीतू पटवारी और नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार के बीच जारी अंदरूनी खींचतान भी गहराने के हालात बनते दिखाई देने लगे हैं। 

बढ़ रही थी जीत की उम्मीदें

आदिवासी बाहुल्य जिला धार में फिलहाल कांग्रेस का कब्जा है। यहां की कुल सात विधानसभाओं में से पांच पर कांग्रेस का झंडा है। जबकि मात्र दो विधानसभा जिला मुख्यालय धार और धरमपुरी भाजपा के पास है। जिले की सरदारपुर, गंधवानी, मनावर, बदनावर और कुक्षी विधानसभाएं आदिवासी आबादी वाली हैं और यह कांग्रेस के खाते में हैं।

राधेश्याम मुवैल आदिवासी युवा नेता हैं और लंबे अरसे से लोगों के बीच मौजूद हैं। मुवैल की सक्रियता और लोगों से सीधे जुड़ाव के चलते उम्मीद की जा रही थी कि इस बार धार लोकसभा में भाजपा को शिकस्त झेलनी पड़ सकती है। भाजपा की कमजोरी उसके द्वारा मैदान में उतारे गए महिला प्रत्याशी पूर्व सांसद सावित्री ठाकुर की कमजोर छवि के चलते भी आंकी जा रही है। सांसद कार्यकाल में क्षेत्र की जनता से दूरी और किए गए वादों से मुकर जाना भी भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ जाता दिखाई दे रहा है।

उमंग के इंतजार में रुके चुनाव कार्यालय

सूत्रों का कहना है कि आदिवासी नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार क्षेत्र में अच्छा प्रभाव रखते हैं। लोकसभा क्षेत्र में हर विधानसभा स्तर पर चुनाव कार्यालय खोला जाना है। सूत्र बताते हैं कि सिंघार पीसीसी की स्टार प्रचारक सूची में भी शामिल हैं, जिसके चलते वे शुरुआती चरणों में होने वाली प्रदेश की लोकसभा सीटों के नाम नामांकन और प्रचार रैलियों में व्यस्त हैं। चूंकि उमंग सिंघार धार जिले के प्रभारी भी हैं, जिसके चलते उनकी मौजूदगी के बिना चुनाव कार्यालयों की रिबिन कटना भी संभव नहीं है। कहा जा रहा है कि इसी देरी को लोकसभा प्रत्याशी राधेश्याम की कमजोरी मानकर बात आगे बढ़ा दी गई है।

नए को मौका, करेगा नुकसान

राधेश्याम के स्थान पर टिकट बदल में लिए जा रहे नाम महेंद्र कन्नौज का नाता जयस से रहा है। उन्होंने हाल ही कांग्रेस का दामन थामा है। गौरतलब है कि जयस को लेकर अब तक आदिवासी मतदाता अपना स्पष्ट मन नहीं बना पाए हैं। वजह यह है कि इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. हीरालाल अलावा विधानसभा जीत के बाद अपना स्थायित्व बरकरार नहीं रख पाए। वे कभी भाजपा खेमे की तरफ बढ़े दिखाई देते हैं तो कभी उनका झुकाव कांग्रेस की तरफ नजर आता है। इसी हालात के चलते महेंद्र कन्नौज के जयस से कांग्रेस में आने और इन पर दांव लगाने के लिए उमंग सिंघार की नाराजगी उठाना कांग्रेस को जीती बाजी हाथ से फिसला देने जैसा हो सकता है।